Thursday 13 October 2016

अतीत की महक ...

alka awasthi



फैला कर बाहें प्रेम की
जाने कितनी बार 
 स्पर्श कर चुकी हूँ
चौखटों को  अतीत की


ले आती हूँ  धूल  मुट्ठी भर
बनाती हूँ तूलिका 
तुम, मैं, और समय 
आह ... 
 
 काश समझ पाती
नादानियां 
 समय रहते 

तो शायद
 मेरा आज 
दे पाता  मुस्कुराहटें चंद
कि ..  
 महसूसती   मैं भी
 महक लाल गुलाल की.. 




1 comment: