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नित्य प्रति
व्योम के छोर में
व्योम के छोर में
छिन्न- भिन्न
टिमटिमाते हैं नाना - बाबा
टिमटिमाते हैं नाना - बाबा
झांकती हो तुम
विधु के झरोखे से...
टपकाने लगती है रात
अमृत की
असंख्य बूंदे
अमृत की
असंख्य बूंदे
कुलांचे भरते हरसिंगार को
थाम लेती है धरित्री
थाम लेती है धरित्री
कुहुकती है कोयल
उन्मुक्त रंभाती हैं गायें
उन्मुक्त रंभाती हैं गायें
निथर आती है सुथराई
हरे - पीले पत्तों पर
हरे - पीले पत्तों पर
अंशुमाली की प्रथम रश्मियों संग
उतर आता है प्रेम तुम्हारा
स्व में स्व से उगते क्षणों सा
उतर आता है प्रेम तुम्हारा
स्व में स्व से उगते क्षणों सा
देने को आयु भर आशीष..
अबोले
यूं ही मां
तू साथ है मेरे....
यूं ही मां
तू साथ है मेरे....