Monday 23 September 2013

वेदना...





नयनों में भर तुम्हारी दीठ
लटका लेती हूं पैर
सांझ के उस पार....

वेदना की काई
निकल आती है पोरों से...

बूझ नहीं पाती
प्रात की पहली सुथराई का
यूं झर-झर बहना

पलकों के संपुट खोल
लगाती हूं आवाज कर्कश
सभी वाद विवाद प्रतिवाद
दिखते हैं ..........
उंचे नीले वितान पर

अधर हिलते हैं
मैं समझ लेती हूं
जीवन गति छोड़
चाहता है विश्राम
मेरा ईष्ट......
दूर हो गया मुझसे!


Monday 7 January 2013

विजन पथ ..




प्रतीक्षा में तुम्हारी
जाने कितने दिव 
नाप डाले सूर्य-शशि  
लौटोगे हे यायावर ?

प्रथम रश्मियों संग 
अधूरा है जो राग 
होगा कभी पूर्ण !

चुक रही है 
हथेलियों में भरी रेत 
समय दौड़ रहा है निर्बाध 
क्या आज भी तुम
रेखाओं  में उलझे हो !

बाहर निकलो 
इस मकड़ जाल से
मैंने सुना है 
बनती-बिगडती हैं 
हाथों  की लकीरें 


बहुप्रतीक्षित है 
भेंट तुमसे ...

साँस चुकने से पहले 
विजन पथ पर
साथ चलोगे न 'मित्र' !